Singrauli Pollution : प्रदूषण ने सिंगरौली जिले के लोगों को किया जीना किया हराम! प्रदूषण के कारण जिले में बढ़ रहे सीओपीडी के मरीज 

Singrauli Pollution: लंग्स यानी फेफड़ा हमारे शरीर का बेहद अहम अंग है। यह खून में ऑक्सीजन को पहुंचाकर शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालता है, लेकिन आजकल जिस तरह से सिंगरौली में प्रदूषण का ग्राफ बढ़ता जा रहा है उससे सांसों यानी क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के मरीज बढ़ते जा रहे हैं।

चिकित्सकों के अनुसार जिला अस्पताल की मेडिसिन विभाग की ओपीडी में हर दिन औसतन आने वाले साढ़े तीन से चार सौ मरीजों में से दो दर्जन सांस की बीमारी से पीड़ित मिलते हैं। यह बीमारी आनुवंशिक रूप से मिलने के साथ लंबे समय से खनन या अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्र में काम करने के कारण होती है। इस जिले में कोल डस्ट, फ्लाई ऐश, ओबी बर्डन डंप वाले एरिया में रहने वाले लोगों के 40 वर्ष की आयु के बाद सीओपीडी से पीड़ित होने की आशंका सर्वाधिक होती है। सर्दी का समय इस बीमारी के लिहाज से काफी संवेदनशील माना जाता है।

चिकित्सकों के अनुसार भेड़ बकरी पालने वाले, प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वालों और आनुवंशिक रूप से इस बीमारी से पीड़ित होने वाले मरीजों को ठंड में खास ख्याल रखना चाहिए। खासकर गर्म कपड़े पहनने के साथ ही गुनगुना पानी पीना चाहिए। यदि इनहेलर ले रहे हैं तो उसे लेते रहें। इसमें कोताही बिल्कुल न करें।

ये हैं सीओपीडी के लक्षण

लगातार खांसी, अत्यधिक बलगम, घरघराहट, सांस की तकलीफ और सीने में जकड़न, सांस लेने में गंभीर कठिनाई तथा बार-बार श्वसन संक्रमण।

प्रदूषित कण फेफड़ों में जमने से होती समस्या

हवा में घुले कोल डस्ट, फ्लाई ऐश, कार प्लांट, ओवर बर्डन के धून कण जब लंग्स में जाकर जमते हैं तो इससे लोगों को सांस लेने में परेशानी होने लगती है। हवा में मौजूद छोटे-छोटे कण सांस से लंग्स में और लंग्स से ब्लड में और धीरे-धीरे शरीर में फैल जाते हैं। जिससे फेफड़ों से जुड़ी समस्याएं दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, जो क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज के रूप में उभर रही है। इस समस्या में सांस लेना मुश्किल हो जाता है। इसमें मुख्य रूप से एम्फाइजिमा और कॉनिक ब्रोंकाइटिस शामिल है, जो समय के साथ फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे में बीमारी को लेकर जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से विहा सीओपीडी दिवस की शुरुआत की गई थी, जो हर साल 18 सवंबर को मनाया जाता है।

सीओपीडी होने के कारण

सीओपीडी मुख्य रूप से फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले उत्तेजक पदार्थों के लंबे समय तक संपर्क में रहने के कारण होता है। धूम्रपान इसका प्रमुख कारण बना हुआ है, हालाकि वायु प्रदूषण या ईधन के धुएं के संपर्क में आने वाले धूम्रपान न करने वाले भी जोखिम में हैं। अल्फा-1 एंटीट्रिप्सिन की कमी जैसे आनुवंशिक कारण से भी यह हो सकती है। सीओपीडी का कोई इलाज नहीं है, जीवनशैली बेहतर कर बीमारी को कंट्रोल कर सकते हैं। इसके लिए आमतौर पर ब्रोंकोडायलेटर्स व स्टेरॉयड जैसी दवाएं और ऑक्सीजन थेरेपी की जाती है.

यह बीमारी आनुवंशिक रूप से मिलने के साथ अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्र में लंबे समय से काम करने या निवासरत लोगों को होने की आशंका सर्वाधिक रहती है। इसके अलावा भेड़-बकरी के पालकों और गेहूं आदि की मड़ाई करने वालों को भी लगातार वही काम करते रहने से सीओपीडी से पीड़ित होने की आशंका होती है। बच्चे भी इसके लिए संवेदनशील होते हैं, हालांकि उन्हें अस्थमा की आशंका ज्यादा होती है। जिला अस्पताल में यदि मेडिसिन में औसतन चार सौ मरीज आते हैं तो उनमें दो दर्जन मरीज सीओपीडी के जरूर होते हैं। – डॉ. गंगा वैश्य, मेडिसिन चिकित्सक व एनसीडी क्लीनिक प्रभारी

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