Singrauli News : बिना जूतों के ट्रैक पर भाग रहा सिंगरौली का मिल्खा! फंड होने पर भी एक होनहार एथलीट को यूं झेलनी पड़ रही आर्थिक मार

Singrauli News : महान धावक मिल्खा ने कई वर्षों पूर्व देश में खेल को जो पहचान दिलाई थी, उसी का नतीजा है आज देश के होनहार एथलीट मिल्खा की तरह ट्रैक पर दौड़कर अपने क्षेत्र और देश का नाम रोशन कर रहे हैं। ऊर्जाधानी में भी ऐसे मिल्खा पाए जाते हैं, लेकिन विडंबना ये है कि यहां के जो मिल्खा हैं, उन्हें प्रैक्टिस करने के लिए मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसना पड़ रहा है। जिससे इनमें से अधिकांश मिल्खा रेस को पूरा ही नहीं कर पा रहे। जिले के ऐसे ही एक मिल्खा हैं जैतपुर निवासी रितेश यादव। जो कि आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से हैं। इस वजह से वह ट्रैक पर दोड़ने के लिए उपयोगी जूतों को खरीद पाने में सक्षम नहीं हैं। जिसका खामियाजा उन्हें अप्रैल 2023 में लखनऊ में आयोजित जूनियर राष्ट्रीय प्रतियोगिता की 400 मीटर रेस में घायल होकर भुगतना पड़ा था। इसके बाद रितेश ने दिसंबर 2024 में हुई जूनियर राष्ट्रीय प्रतियोगिता में देश में 6वां स्थान हासिल किया और इससे भी पहले वह राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में 5 बार गोल्ड हासिल कर चुके हैं।

विडंबना है रितेश ऊर्जाधानी का निवासी

इसे विडंबना ही कहेंगे कि जिस जिले में हजार करोड़ से ज्यादा डीएमएफ हो और चार सौ करोड़ से अधिक सीएसआर, वहां का एक युवा धावक रितेश अपनी प्रतिभा निखारने के लिये मेरठ में संघर्ष कर रहा है। रितेश जैसे होनहार खिलाड़ियों के लिये खेल सुविधाएं विकसित न कर पायें तो स्पांसर ही कर दें लेकिन न तो कंपनियों की ऐसी कोई मंशा है और न ही नीति। सबसे बड़ी बात नीयत भी नहीं है वर्ना खेल सुविधाओं का विकास करना कौन सी बड़ी बात है? नीयत होती तो ऐसे खिलाड़ियों को किसी अच्छी एकेडमी में भेजकर ट्रेनिंग दिलाई जा सकती थी।

इसलिए मेरठ जाना पड़ा रितेश को

रितेश कहते हैं कि अपने जिले में एक तो धावक के लिए आवश्यक सिंथेटिक ग्राउंड नहीं है, इसलिए मजबूरी में जिले से बाहर आना पड़ा। वह बताते हैं कि शुरूआती दिनों में वह जयंत के विजय स्टेडियम में प्रैक्टिस करने जाया करते थे और वहां एथलेटिक संघ के जसविंदर सिंह सर व रामपोस सर काफी मदद करते थे। काफी कुछ सिखाये भी, लेकिन वहां सीमित संसाधनों के कारण मुझे मेरठ आना पड़ा। वह कहते हैं कि मेरठ आने से खर्चे तो काफी बढ़ गये हैं, लेकिन अपने सपने तक पहुंचने के लिए ये संघर्ष के दिन झेलने में कोई परहेज नहीं है।

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